एक चॉकलेट में छिपी है बाल विवाह की सच्चाई

अरविन्द शर्मा
एक चॉकलेट, हां वोही चॉकलेट जो टेस्टी है और छोटे बच्चों को सबसे प्यारी लगती है। लेकिन जब आप यह सुनेंगे कि इसी चॉकलेट में बाल-विवाह का दर्द छिपा है तो आप जरूर चौंक जाएंगे। राजस्थान में होने वाले बाल-विवाह की 'वेदी' इस चॉकलेट पर सजती है। शुरू में मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ मगर जब मैंने इन इलाकों और बाल-विवाह पर पड़ताल की तो यही सब हैरान-परेशान करने वाली जानकारी हासिल हुई। राजस्थान में 83 फीसदी बाल विवाह करवाने वाले ज्यादातर अभिभावक और रिश्तेदार नए कपड़ों, गाजे-बाजे और मिठाइयों का लालच देकर अपने बच्चों की शादियां करवा देते हैं। यह जानकारी नींद जरूर उड़ाती है, लेकिन हकीकत के बेहद करीब है। महिला व बाल विकास विभाग की ओर से पिछले बरस जब सर्वे कराया तो सामने आया था कि नाबालिग लड़के-लड़कियों को परंपराओं, गरीबी और माता-पिता व रिश्तेदारों के दबाव के कारण भी विवाह करने के लिए विवश होना पड़ता है। बड़ी बात तो यह है कि वहीं कम उम्र में विवाहित होने वाले इन बच्चों को विवाह का मतलब भी नहीं मालूम है। मैंने पिछले ब्लॉग 'अगले जन्म मोहे बीटिया न कीजोÓ में इसका अहम खुलासा भी किया है। महिला एवं बाल-विकास विभाग का यह सर्वेक्षण राजस्थान के टोंक व जयपुर के दस-दस गांव में कम उम्र में विवाह के बंधन में बंधे लोगों के माता-पिता, सास-ससुर, बड़े भाई-बहन और अन्य सगे संबंधियों से बातचीत पर आधारित है। इस बातचीत के आधार पर जो जानकारी हासिल हुई, उसने महिला एवं बाल विकास विभाग को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। इन सबके अलावा 66 फीसदी के लिए विवाह का मतलब उत्सव मनाना है, 41 फीसदी के लिए आकर्षण का केंद्र बनना है, तो 25 फीसदी के लिए नए कपड़े पहनना है।

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6 Comments

Nirmla Kapila said...
हैरानी होती है कि आज के युग मे भी ऐसा होता है हाँ सीरियल्ज़ मे देख कर लगता है कि ये बहुत पुरानी बातें हैं हो सकता है कि आजकल भी दूर दराज गावोम मे ऐसा हो मगर अपकी पोस्त पढकर मन विचलित सा हो गया है निश्ब्द आभार्
vikram7 said...
बाल बिवाह एक ऎसी सामाजिक कुरीत हॆ,कि आजादी
के इतने दिनो बाद भी हम इससे मुक्ति नही पा सके
हॆं. जरूरत हॆ,प्रशासनिक व सामाजिक अस्तर से प्रयास की
सागर नाहर said...
चॉकलेट के अलावा बच्चों के लिये यह एक खेल सा भी होता है।
आखा तीज (अक्षय तृतीया) के दिन आज भी धड़ल्ले से बाल विवाह होते हैं।
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शशांक शुक्ला said...
bache to bache hain kya krein ma baap kya na krwa dein aaj kal ke
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anjule shyam said...
bacche man ke sache...aur jub koi inki bhawnawon ko galat tarike se thyes pahuchata hai to yahi bachhe akramak bhi ho jate hain.bacchho ko chaklet ka lalach de karke unki shadi karwana kanun aur unke aagmi bhawishy ke sath bhi khilwad hai....
anjule shyam maurya
+919990747609
By mohalla blog
Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...
हैरानी होती है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम लोग इस प्रकार की सामाजिक कुरीतियों को जड से नष्ट नहीं कर पा रहे हैं।