मेरी नौकरी कहां? रोजगार गुम है. सपने नहीं,
नौकरी चाहिए. ये वे सवाल हैं, जिन्हें आजकल कोई पूछना नहीं चाहता. इसलिए इन सवालों
को ‘आपकी खबर’ ब्लॉग के जरिए भी उठाएंगे. हर रविवार को आपसे जुड़े किसी मुद्दे पर पूछेंगे
सरकार से. आपके नेता से. यही सवाल.
बेरोजगार हूं सरकार! : सीरिज-1
'खाली कंधे हैं इन पर कुछ भार चाहिए
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए
जेब में पैसा नहीं डिग्री लिए फिरता हूं
दिनोंदिन अपनी नज़रों से गिरता हूं
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए
राहुल रेड की कविता की पंक्तियां देश में बेरोजगारी की स्थिति को बयां कर रही हैं.
राजस्थान में एलडीसी भर्ती-2018 में सामान्य वर्ग और ओबीसी वर्ग के 587 पदों को कम करने का मामला हो या फिर चाहे एसएससी की परीक्षा में यूएफएम हटाने की बात. ये स्टूडेंट्स लगातार सोशल मीडिया पर ट्वीट वार खेल रहे हैं.
इनकी हालत देखकर लगता है कि हम सब जिद पर अड़े हैं कि इनकी तरफ देखना ही नहीं है. राजनेता भी अपनी सेहत के हिसाब से हर दिन एजेंडा तय करते हैं. एलडीसी भर्ती में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है. कांग्रेस सरकार के मंत्री और विधायक मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं. युवा इन्हें सोशल मीडिया में वायरल कर रहे हैं. नेताजी इसलिए खुश है कि युवाओं के बीच उनकी पकड़ बन रही है. युवा इसलिए खुश है कि नेताजी ने उनके लिए मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी. लेकिन, यहां सवाल तो यह है कि क्या वो चिट्ठी सीएम तक पहुंची है या नहीं. उसकी उपयोगिता क्या है. उसे सीएम कितनी गंभीरता से ले रहे हैं. क्या चिट्ठी लिखने वाले ने सीएम से उस मुद्दे पर बात की या नहीं.
असल में यह समस्या इतनी बड़ी है कि समाधान के नाम पर पुड़िया पेश कर दी जाती है जो मीडिया में हैडलाइन बनकर गायब हो जाती है. इस वक्त अनाज और आदमी दोनों छितराए हुए हैं. न तो दाम मिल रहा है न काम मिल रहा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ये मुद्दे एक दूसरे की निंदा करने भर के लिए हैं लेकिन कोई भी ठोस प्रस्ताव जनता के बीच नहीं रखता है कि वाकई क्या करने वाला है, जो कर रहा है वो क्यों चूक जा रहा है. कई बार लगता है कि हमारे राजनेता, सिस्टम में बैठे लोगों ने जिद कर ली है कि इन बुनियादी सवालों पर बात नहीं करना है. मीडिया को हर रात कोई न कोई थीम मिल जाता है, सब कुछ इसी थीम की तलाश के लिए हो रहा है.
मैंने इन दिनाें देखा है कि ट्वीट के जरिए अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए युवा रातभर ट्विटर पर लगे हुए हैं. एईएन भर्ती के मामले में तो युवा अल्पसुबह चार बजे ही ट्वीट करने लगे थे. इनकी सुनवाई नहीं करके हमारे नेता लगातार ऐसे नौजवानों की रतजगी का मजाक उड़ा रहे हैं. आप यदि सोशल मीडिया के कुछ डेटा निकालेंगे, तो आपको पता चलेगा कि एलडीसी भर्ती में 587 पदों का हिसाब मांगने के लिए युवाओं ने जितने कैंपेन चलाए हैं, उतने शायद इन नेताओं ने अपने चुनाव अभियान में भी नहीं चलाए होंगे. क्योंकि-वोट के लिए कैंपेन की जरूरत नहीं होती. कुछ जाति की बातें करनी होती है और कुछ लालच देना होता है. असल मायने यह है कि राजनीति गप्पबाजी में बदल गई है. तय आपको करना है कि गप्प ही सुनना है या काम भी देखना है. कभी इन छात्रों से पूछिए कि उनकी नजर में बड़ी खबर क्या है, वे यही बताएंगे कि हमारी परीक्षा का डेट कब आएगा, जो परीक्षा दी है उसका रिज़ल्ट कब आएगा. जरूर इन छात्रों में ऐसे भी बहुत हैं जो दिन रात हिन्दू मुस्लिम डिबेट में लगे रहते हैं मगर उनका भी सवाल है कि परीक्षा का रिजल्ट कब आएगा.
युवाओं के किसी अन्य मुद्दे पर रविवार को फिर आपके साथ. तब तक आप अपनी आवाज उठाने में लगे रहिए. हमें लिख भेजिए. EMAIL : sarviind@gmail.com पर
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