भोपाल गैस त्रासदी : एंडरसन, इंसाफ और सियासत

अरविन्द शर्मा
फाइलों में लगभग दफन हो भोपाल गैस त्रासदी की फाइल 25 साल बाद खुली तो एंडरसन, इंसाफ और सियासत में फंसकर रह गई। लेकिन बड़ा सवाल आज भी जवाब मांग रहा है, सवाल उस कायरत से जुड़ा है, जो उस वक्त देश के सियासतदारों ने दिखाई। अब हम अमेरिका को कोस रहे हैं? यह भी हैरान करने वाली बात है कि उस वक्त मामले को दबाने और एंडरसन को भगाने से जुड़े अफसर व सियासतदार इस मामले पर चुप्पी साधे हुए है। कई अफसर तो इस मामले की बजाए मीडिया को बनारस जैसे शहरों की खुबसूरती की बात करने के लिए कह रहे हैं। यानी हर कोई चुप्प रहना चाहता है? जाहिर है कि इस चुप्पी के पीछे ऐसा राज छिपा है जो सामने आया तो कई चेहरे बेनकाब होंगे। आज भोपाल के गैस पीडि़तों के लिए शोर मचा रहे सब लोग अपने गिरेबान में झांकें और यह सोचे कि 25 बरसों में उन्होंने गैस पीडि़तों के लिए कौनसा विशेष कार्य किया? केंद्र व राज्य सरकार मिलकर इस बात की जांच करें कि क्या सचमुच यूनियन कार्बाइड भोपाल के आस-पास का भूमिगत जल दूषित व प्रदूषित है या सिर्फ यह कोरी अफवाह है। सवाल यह भी है कि कैसे कोई संस्था वैज्ञानिक आधार पर यह दावा कर सकती है कि पानी दूषित है, वहीं राज्य सरकार कहती है कि ऐसा कुछ भी नहीं है। यूनियन कार्बाइड के आसपास का पानी बिल्कुल स्वच्छ है। हैरानी और दुख की बात है कि इस मामले में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया।
बड़े सवाल, जिनका चाहिए जवाब
- क्या हम
पिछले 25 बरसों से सो रहे थे। क्या हमने इन सालों में ऐसा कुछ किया है कि आगे देश में और एक भोपाल न बन पाए?
- आरोपी एंडरसन कैसे भागा?
- मैक्सिकों की खाड़ी में हुए तेल रिसाव से अमेरिका के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा तो उन्होंने दोषी कंपनी ब्रिटिश पेट्रोलियम को और ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया। 34 बिलियन डॉलर मांगे। कंपनी नहीं मानी तो राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कंपनी के चेयरमैन कार्ल टेनरिक स्वानबर्ग और सीईओ टोनी हेवार्ड को सीधे व्वाइट हाउस तलब किया। एक-एक डॉलर का हिसाब लिखवाया। यह कार्रवाई सिर्फ 11 लोगों की मौत पर हुई।
लेकिन, भोपाल में 15 हजार लोग मरे। कायरता देखिए, यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन भारत पहुंचा तो हमारे विदेश सचिव ने सबसे पहले उसे सुरक्षित वापसी की गारंटी दी। वो भी भारत सरकार की ओर से। उसे वापस भी भेज दिया गया। हां, गिरफ्तारी का ड्रामा जरूर हुआ। पूरे मामले में प्रधानमंत्री राजीव गांधी चुप रहे, आखिर क्यों? क्या हम अमेरिका की दवाब में जीते हैं? क्यों नहीं दे पा रहे हैं हम लोगों को इंसाफ और जवाबदारों से क्यों नहीं मांगे जा रहे जवाब?
- भोपाल गैस पीडि़तों के लिए शोर मचा रहे नेता, अफसर व लोग अपने गिरेबान में झांके और यह सोचे कि पिछले सालों में उन्होंने गैस पीडि़तों के कल्याण के लिए अपनी ओर से ऐसा कौन सा विशेष कार्य किया है?
- गैस पीडि़तों के स्वास्थ्य कल्याण के लिए निर्मित भोपाल मेमोरियल अस्पताल ट्रस्टियों व वहां कार्यरत डॉक्टरों के आपसी झंगड़े का मंच बन गया है। कौन, कब और कैसे इस ट्रस्ट का प्रमुख व सदस्य बन गया, यह आज भी भोपाल के छह लाख गैस पीडि़तों को पता नहीं है। क्यों और किस के दबाव में अच्छे बड़े चिकित्सकों ने इस अस्पताल से किनारा कर लिया, इसका जवाब किसी के पास है?
- गैस त्रासदी का दर्द, तीसरी पीढि़ भी झेल रहे हैं, इसका न्याय कौन करेगा? क्या इसमें भी एंडरसन का दोष है? या फिर अमेरिका का दबाव कि इन छह लाख लोगों को उनके हाल पर छोड़ दो।

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1 Comments

Anonymous said…
good artical