छात्रों की दर्दभरी कहानियां सुनिए एसएससी...कमेटी की रिपोर्ट आएगी या नहीं, साफ-साफ बता दें

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ये दर्द और दुखभरी कहानी एसएससी की उन छात्रों की हैं, जिन्होंने एसएससी पर भरोसा किया. इनका गुनाह सिर्फ यह है कि इन्होंने सीएचएसएल परीक्षा की तैयारी के लिए दिनरात एक किए और अपने माता-पिता से यह वादा किया कि वे इस बार सलेक्ट होकर उनके अधूरे सपने जरूर पूरा करेंगे. इन्हें एक शब्द की ताकत पता नहीं थी. यह शब्द है ‘काल्पनिक’. एक शब्द में कितनी ताकत होती है-यह किसी को नहीं पता है तो उन देश के 4560 छात्र-छात्राओं से पूछ लीजिए. जिन्होंने उत्तर पुस्तिका में काल्पनिक नाम व पता लिख दिया था. देशभर के सैकड़ों छात्रों ने दैनिक भास्कर को सोशल मीडिया पर अपनी कहानी लिखी है. छात्र नवीन लिखते हैं कि एसएससी ने इन्हें बताया नहीं था कि किसी को पत्र लिखने और भेजने के लिए किसी नाम व पते की जरूरत नहीं होती है. एसएससी का पत्र जादुई पत्र है, जो बिना नाम-पते के भी चला जाएगा. एसएससी की चालाकी में यह फंस जाएंगे और माता-पिता से किए गए वादे अधूरे रह जाएंगे, यह भी इन्हें नहीं पता था. छात्र मनोज की ही सुन लीजिए. इन्होंने सोशल मीडिया पर गुस्सा जाहिर करते हुए लिखा है कि एसएससी उनसे पूछती है कि छात्र उनसे क्या अपेक्षाएं रखते हैं. स्टूडेंट्स जवाब देते हैं-धोखा. हां, इन हजारों स्टूडेंट्स के साथ तो यही हुआ है. एक छोटी गलती की क्या कोई भी पेरेंट्स इतनी बड़ी सजा देता है. पेरेंट्स तो उन्हें डांटते हैं. फटकारते हैं और कहते हैं-गलती तो की है, चल दो घंटे के लिए कमरे में बंद रहे. आज दिनभर घर के बाहर नहीं जाएगा लेकिन, एसएससी ने तो इन्हें ऐसी सजा दी है कि जैसे वे स्टूडेंट्स को कह रहे हैं कि दिनरात मेहतन क्या हमसे पूछकर की थी. अपने माता-पिता से वादे हमसे पूछकर किए थे.

सैकड़ों स्टूडेंट्स ने मुझे अपना दर्द लिखकर भेजा है. छात्र सन्नी राजन ने लिखा है कि हम आशा करते हैं कि कमेटी जल्द ही एसएससी की गड़बड़ी को मानेगी और उन्हें न्याय मिलेगा. एक छात्र ने लिखा कि एनसीईआरटी और सीबीएसई के पत्र लेखने के फॉर्मेट को ही मानना चाहिए. उसके आधार पर ही एसएससी को उनके साथ न्याय करना चाहिए. छात्र बलवीर लिखते हैं कि यूएफएम केस लगाना पूरी तरह अन्याय है. छात्र विवेक का कहना है कि वे अपने घरवालों को समझा नहीं पा रहे हैं कि उन्होंने तैयारी अच्छी की थी, लेकिन एसएससी ने उन्हें उस गलती की सजा दे दी है, जिसके वो हकदार नहीं है. उनका कहना है कि पेरेंट्स यही समझते हैं कि उन्होंने तैयारी नहीं की. इसलिए फेल हो गए. छात्र रोहित प्रकाश मीना ने लिखा है कि उत्तर पुस्तिका में क्या लिखा, यह उनका भविष्य तय नहीं कर रहा. बल्कि दो शब्द उनका भविष्य तय कर रहे हैं. यह बड़ा मजाक है.

कमेटी की रिपोर्ट...
इस रिपोर्ट का सबको इंतजार है. एसएससी ने कहा कि वे 30 जून को रिपोर्ट देगी. इसके बाद अब कहा गया कि कोविड की वजह से रिपोर्ट में देरी होगी. सवाल तो यह है कि रिपोर्ट देने में इतनी देरी क्यों हो रही है. जबकि खुली आंखों से साफ-साफ दिख रहा है कि एसएससी ने यूएफएम के नाम पर छात्रों के साथ अन्याय किया है. धोखा किया है. इसके सबूत भी मैं दैनिक भास्कर में लगातार सामने रखता रहा हूं. एसएससी की मनमानी, मनमर्जियां और गड़बड़ियां पहले भी सबके सामने आ चुकी है. अब वह छात्रों की आवाज नहीं दबा सकेगी. वह झूठ नहीं बोल सकता. आयोग को छात्रों के साथ न्याय करना ही होगा. उन्हें जवाब देना ही होगा. जब तक एसएससी अपनी रिपोर्ट नहीं दे देती. छात्रों को न्याय नहीं मिल जाता, तब तक हम उनके पीछे रहेंगे. उन पर लगातार नजर रहेगी. उम्मीद है कि वह जुलाई तक छात्रों के हक में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी और हजारों छात्रों को न्याय मिलेगा.

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