SSC UFM : 530 सांसद, लेकिन 4 सांसद ही क्यों बोले? सोचिए-चुनाव के वक्त ये युवा नहीं कह दें-करारा जवाब मिलेगा



मैं बेरोजगार हूं-सीरिज-2

लॉक डाउन में आपने अपना समय कैसे बिताया, मुझे नहीं पता, लेकिन इन 60 दिनों में मैंने युवाओं का दर्द और सिस्टम की मनमर्जी बेहद करीब से महसूस की है. राजनीति का स्तर भी कितना गिर चुका है. ये भी इन दिनों बेहद करीब से देखा है. एसएससी (स्टाफ सलेक्शन कमिशन) सोशल मीडिया पर खूब ट्रेड कर रहा है. यहां सीएचएसएल-2018 में यूएफएम नियम में अफसरों की मनमर्जी और फर्जीवाड़े के सबूत आरटीआई में आई उत्तर पुस्तिकाएं खुद दे रही है. लेकिन, इस मनमाने यूएफएम की वजह से 4560 छात्रों का फेल किया जाना किसी सरकार, किसी नेता के लिए कितने मायने रखता है. इसका जवाब है-मामूली फर्क भी नहीं पड़ता. इस विभाग के मुखिया है-केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह. ये छात्र इन्हें हर दिन 500 शिकायतें कम से कम भेजते हैं. ट्विटर पर सात-आठ लाख ट्वीट कर चुके हैं. हजारों ईमेल इन्हें कर चुके हैं, लेकिन इनका जवाब तो छोड़ दीजिए, उन्होंने एक छोटा सा ट्वीट तक नहीं किया. लोकसभा चुनाव के वक्त के विज्ञापन देख रहा था. इनमें नौकरी यानी रोजगार की बात थी. दिलचस्प यह है कि ये बात सरकार के विज्ञापन में नहीं होती. किसी सांसद के एजेंडे में यह मुद्दा नहीं होता. 


इस देश में 530 सांसद हैं. ये इन युवाओं का वोट लेकर ही संसद की सीढ़ियों तक पहुंचे हैं. चुनाव के वक्त इनके दिए गए भाषण निकाल लीजिए. इनके ट्वीट देखिए. प्रेस कॉन्फ्रेंस के आंकड़े जुटाएंगे तो पता चलेगा कि इन्होंने बेरोजगारी और युवाओं पर कितनी बार बोला और इनके वोट के लिए इनकी तारीफों में कितने कसीदें गढ़े होंगे. एसएससी के मुद्दे को मैं लगातार दो महीने से ज्यादा समय से कवर कर रहा हूं, लेकिन महज रीब चार सांसदों के अलावा मुझे पांचवां नाम याद नहीं आ रहा, जिन्होंने इस पर ट्वीट किया हो. पत्र लिखा हो. इनमें भी सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ही ऐसे हैं, जो लगातार केंद्रीय मंत्री डाॅ. जितेंद्र सिंह को ट्वीट कर रहे हैं. उनसे मिलने का समय मांग रहे हैं. क्या सांसद और सरकारें युवाओं का इतना मजबूर क्यों कर रही है.

आपके पास एक आंकड़ा है या नहीं, मुझे नहीं पता. आपके वोटों से सांसद बनने के बाद ये हर महीने एक लाख रुपए का वेतन लेते हैं. इसमें भत्ते शामिल नहीं है. यह राजनीति का वह हिस्सा हैं, जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहते. ये नेता युवाओं  को रोजगार के सपने दिखाते हैं और खुद मोटी तनख्वाह लेकर 5 साल तक खुद चैन की नींद सोते हैं. और ये युवा इन 5 सालों तक इनके चक्कर लगाते रहते हैं. मैं राजनीति को दोष नहीं देता. ये तो अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं. युवा क्या कर रहे हैं. ये मुख्य बात है. सोचिए, यही युवा अपने इलाके के सांसद को फोन पर, ईमेल पर, ट्वीटर पर अपना वोट याद दिलाए तो क्या यूएफएम जैसे नियम नहीं हट सकते. उन्हें न्याय नहीं मिल सकता.
चलते-चलते एक बात याद दिला देता हूं. 2011 में एक फिल्म आई थी आरक्षण. उसका बहुत चर्चित डॉयलोग था. करारा जवाब मिलेगा... क्या ये नेता उसी दिन का इंतजार कर रहे हैं, ये इन्हें ऐसा ही जवाब दें. युवाओं को भी इस बारे में जरूर सोचना चाहिए.

अगली सीरिज बुधवार को... आपके सुझाव और अन्य एग्जाम से जुड़े मुद्दे हमें लिख भेजें ईमेल- sarviind@gmail.com पर

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3 Comments

Sir you are doing great ...thanks for your efforts. I hope this will help us get justice
Anonymous said…
UFM तो हटेगा, चाहे कैसे भी हटवाना पड़े।
Anonymous said…
Sir ur support is priceless for us